मिसाइलों को दुनिया और भारत की मिसाइल पॉवर। missiles and the missile power of India
आज हम बात करेंगे मिसाइलों (missile power) के बारे में – वो हथियार जो आधुनिक युद्ध का चेहरा बदल चुके हैं। क्या आप जानते हैं कि एक मिसाइल ध्वनि की गति से भी 5 गुना तेज़ चल सकती है? या फिर कि कुछ मिसाइलें हज़ारों किलोमीटर दूर अपने लक्ष्य को सटीकता से नष्ट कर सकती हैं? आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे मिसाइल क्या है, इसके प्रकार, कार्य प्रणाली क्या है। इसके साथ ही दुनिया के विभिन्न देशों की मिसाइल क्षमताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मिसाइल क्या है?
सबसे पहले समझते हैं कि मिसाइल होती क्या है। मिसाइल दरअसल एक स्व-चालित निर्देशित हथियार होता है जिसे किसी विशेष लक्ष्य पर प्रहार करने के लिए डिज़ाइन किया जाता है। सरल शब्दों में कहें तो, मिसाइल एक ऐसा प्रक्षेप्य है जिसमें अपने लक्ष्य तक पहुंचने का रास्ता खुद बदलने की क्षमता होती है। इसमें प्रणोदन प्रणाली, मार्गदर्शन प्रणाली और एक विस्फोटक वारहेड होता है।
मिसाइल और रॉकेट में मुख्य अंतर यह है कि रॉकेट बिना किसी मार्गदर्शन के सीधी रेखा में चलते हैं, जबकि मिसाइलें अपना मार्ग बदल सकती हैं और अपने लक्ष्य का पीछा कर सकती हैं। इसी कारण मिसाइलें आधुनिक युद्ध में अत्यंत महत्वपूर्ण हथियार बन गई हैं।
मिसाइल के मुख्य भाग
एक मिसाइल के प्रमुख हिस्से होते हैं:
- वारहेड: यह मिसाइल का विस्फोटक भाग होता है जो लक्ष्य पर प्रहार करता है। यह पारंपरिक विस्फोटक या परमाणु सामग्री से युक्त हो सकता है।
- प्रणोदन प्रणाली: यह मिसाइल को गति प्रदान करती है। यह ठोस, तरल, हाइब्रिड या अन्य प्रकार के इंजन से युक्त हो सकती है।
- मार्गदर्शन प्रणाली: यह मिसाइल को सही दिशा में ले जाने का काम करती है। इसमें रडार, जीपीएस, लेजर या अन्य प्रौद्योगिकियाँ शामिल हो सकती हैं।
- नियंत्रण प्रणाली: यह मिसाइल के दिशा और गति को नियंत्रित करती है।
- फ्रेम या बॉडी: यह मिसाइल के सभी हिस्सों को एक साथ रखती है और इसे वायुगतिकीय आकार प्रदान करती है।
मिसाइल के प्रकार
मिसाइलों को कई आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है। आइए इन्हें विस्तार से समझें:
प्रणोदन प्रणाली के आधार पर
- ठोस प्रणोदन मिसाइलें: इनमें ठोस ईंधन का उपयोग किया जाता है, जैसे कि एल्यूमीनियम पाउडर। ये आसानी से भंडारित की जा सकती हैं और जल्दी से अधिक गति प्राप्त कर सकती हैं। भारत की पृथ्वी और अग्नि श्रृंखला की मिसाइलें इसी प्रकार की हैं।
- तरल प्रणोदन मिसाइलें: इनमें तरल ईंधन जैसे हाइड्रोकार्बन का उपयोग किया जाता है। इन्हें भंडारित करना मुश्किल होता है, लेकिन इनके प्रवाह को नियंत्रित करना आसान होता है।
- रैमजेट प्रणोदन: यह वायु वाहन की आगे की गति से ही प्रवेश वायु के संपीड़न को प्राप्त करता है। इसमें कोई टर्बाइन नहीं होता और इसे सुपरसोनिक गति चाहिए होती है।
- स्क्रैमजेट प्रणोदन: यह सुपरसोनिक दहन रैमजेट है, जिसमें दहन इंजन के माध्यम से सुपरसोनिक वायु वेगों पर होता है।
- क्रायोजेनिक प्रणोदन: इसमें बहुत कम तापमान पर संग्रहित तरलीकृत गैसें, जैसे तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है।
गति के आधार पर
- सबसोनिक मिसाइलें: ये ध्वनि की गति से कम (0.8 मैक तक) चलती हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिकी टॉमहॉक और हार्पून मिसाइलें।
- सुपरसोनिक मिसाइलें: ये ध्वनि की गति से 2-3 गुना तेज़ (2-3 मैक) चलती हैं। भारत-रूस की ब्रह्मोस मिसाइल इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, जो एक सेकंड में करीब एक किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है।
- हाइपरसोनिक मिसाइलें: ये ध्वनि की गति से 5 गुना या उससे अधिक तेज़ (5+ मैक) चलती हैं। कई देश इस तकनीक पर काम कर रहे हैं, जिसमें ब्रह्मोस-II भी शामिल है।
प्रक्षेपण और लक्ष्य के आधार पर
- सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें (SSM): जमीन से लॉन्च होकर जमीनी लक्ष्यों पर प्रहार।
- सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें (SAM): जमीन से लॉन्च होकर हवाई लक्ष्यों जैसे विमान या अन्य मिसाइलों पर प्रहार।
- हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें (AAM): विमान से लॉन्च होकर हवाई लक्ष्यों पर प्रहार।
- हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें (ASM): विमान से लॉन्च होकर जमीनी लक्ष्यों पर प्रहार।
- समुद्र से समुद्र में मार करने वाली मिसाइलें: नौसेना के जहाज़ों से लॉन्च होकर अन्य जहाज़ों पर प्रहार।
- समुद्र से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें: जहाज़ से लॉन्च होकर जमीनी लक्ष्यों पर प्रहार।
- टैंक रोधी मिसाइलें: बख्तरबंद वाहनों और टैंकों को नष्ट करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई मिसाइलें।
प्रकार के आधार पर
- क्रूज़ मिसाइलें: ये मिसाइलें वायुमंडल में उड़ान भरती हैं और जेट इंजन तकनीक का उपयोग करती हैं। ये अधिकतर कम ऊंचाई पर उड़ती हैं, जिससे इन्हें रडार द्वारा पकड़ना मुश्किल होता है। उदाहरण – ब्रह्मोस, टॉमहॉक आदि।
- बैलिस्टिक मिसाइलें: ये अपने प्रक्षेपण के बाद एक बैलिस्टिक प्रक्षेपवक्र का अनुसरण करती हैं और अंतरिक्ष तक जाकर अपने लक्ष्य पर वापस गिरती हैं। उदाहरण – अग्नि सीरीज, पृथ्वी मिसाइल आदि।
- अर्ध-बैलिस्टिक मिसाइलें: ये बैलिस्टिक मिसाइलों की तरह काम करती हैं, लेकिन उड़ान के दौरान अपनी दिशा बदल सकती हैं।
रेंज के आधार पर
- छोटी दूरी की मिसाइलें: 1,000 किलोमीटर तक की रेंज। उदाहरण – पृथ्वी-I (150 किमी), पृथ्वी-II (350 किमी)।
- मध्यम दूरी की मिसाइलें: 1,000-3,000 किलोमीटर की रेंज। उदाहरण – अग्नि-I (700-1,200 किमी), अग्नि-II (2,000-2,500 किमी)।
- लंबी दूरी की मिसाइलें: 3,000-5,500 किलोमीटर की रेंज। उदाहरण – अग्नि-III (3,000-5,000 किमी), अग्नि-IV (4,000 किमी)।
- अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें (ICBM): 5,500 किलोमीटर से अधिक की रेंज। उदाहरण – अग्नि-V (5,000-8,000 किमी)।
वारहेड के आधार पर
- पारंपरिक वारहेड: इनमें उच्च ऊर्जा विस्फोटक होते हैं जो विस्फोट के समय नुकसान पहुंचाते हैं।
- परमाणु वारहेड: इनमें परमाणु विस्फोटक होते हैं जो बहुत बड़े पैमाने पर विनाश कर सकते हैं।
मिसाइल की कार्य प्रणाली
मिसाइल कैसे काम करती है, यह समझना भी दिलचस्प है:
- प्रक्षेपण (लॉन्चिंग): जब मिसाइल को लॉन्च किया जाता है, तो इसका प्रणोदन सिस्टम सक्रिय होता है, जो इसे आवश्यक वेग प्रदान करता है।
- त्वरण (एक्सेलेरेशन): प्रारंभिक चरण में मिसाइल अपनी अधिकतम गति प्राप्त करने के लिए तेजी से त्वरित होती है।
- मार्गदर्शन (गाइडेंस): मिसाइल की मार्गदर्शन प्रणाली लगातार उसकी स्थिति की जांच करती है और लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आवश्यक समायोजन करती है।
- लक्ष्य का पता लगाना (टारगेट ट्रैकिंग): कई मिसाइलें अपने लक्ष्य का पता लगाने के लिए रडार, इन्फ्रारेड या अन्य सेंसर का उपयोग करती हैं।
- प्रभाव (इम्पैक्ट): अंत में, मिसाइल अपने लक्ष्य पर प्रहार करती है और वारहेड विस्फोट होता है।
मार्गदर्शन प्रणालियां
मिसाइल के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों में से एक है उसकी मार्गदर्शन प्रणाली। आइए इनके प्रकारों को समझें:
- वायर मार्गदर्शन: इसमें मिसाइल से निकाले गए तारों के माध्यम से कमांड सिग्नल भेजे जाते हैं।
- कमांड मार्गदर्शन: लॉन्च साइट से रेडियो, रडार या लेजर के माध्यम से मिसाइल को निर्देश दिए जाते हैं।
- टेरेन कंपैरिजन मार्गदर्शन: यह सिस्टम जमीन की प्रोफाइल को मापता है और संग्रहीत जानकारी से तुलना करता है।
- स्थलीय मार्गदर्शन: यह प्रणाली तारों के कोणों को मापती है और मिसाइल के प्रक्षेप पथ को निर्धारित करती है।
- जड़त्वीय मार्गदर्शन: यह पूरी तरह से मिसाइल के भीतर होता है और प्रक्षेपण से पहले प्रोग्राम किया जाता है।
- बीम राइडर मार्गदर्शन: सतही रडार लक्ष्य को ट्रैक करता है और एक मार्गदर्शन किरण प्रेषित करता है।
- लेजर मार्गदर्शन: इसमें लक्ष्य पर लेजर किरण केंद्रित की जाती है और मिसाइल उस परावर्तित प्रकाश का पीछा करती है।
- आरएफ और जीपीएस मार्गदर्शन: आधुनिक मिसाइलें अक्सर जीपीएस और रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल का उपयोग करती हैं।
दुनिया के मिसाइल शक्ति संपन्न देश
अब जानते हैं दुनिया के उन देशों के बारे में जिनके पास सबसे शक्तिशाली मिसाइल क्षमताएं हैं:
- अमेरिका (USA): दुनिया की सबसे बड़ी मिसाइल शक्ति, जिसके पास मिनटमैन-III और ट्राइडेंट II जैसी ICBM हैं जो 12,000 किलोमीटर तक के लक्ष्य को नष्ट कर सकती हैं।
- रूस: विश्व में सबसे विविध और बड़ा मिसाइल भंडार। सरमत (Satan-2) ICBM 18,000 किलोमीटर तक के लक्ष्य को नष्ट कर सकती है और एक बार में कई परमाणु वारहेड ले जा सकती है।
- चीन: डोंगफेंग मिसाइल सीरीज के साथ तेजी से अपनी मिसाइल क्षमता का विस्तार कर रहा है। डोंगफेंग-41 की रेंज 12,000-15,000 किलोमीटर है।
- भारत: अग्नि मिसाइल कार्यक्रम के माध्यम से मजबूत स्वदेशी मिसाइल क्षमता विकसित की है। अग्नि-V की रेंज 5,000-8,000 किलोमीटर है।
- फ्रांस: नौसेना आधारित M51 SLBM 8,000-10,000 किलोमीटर की रेंज के साथ।
- ब्रिटेन: ट्राइडेंट मिसाइल सिस्टम जो अमेरिका से खरीदा गया है।
- इज़राइल: जेरिको ICBM सीरीज और एरो एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम।
- पाकिस्तान: शाहीन और गज़नवी मिसाइल सीरीज।
- उत्तर कोरिया: ह्वासोंग मिसाइल सीरीज, जिसमें ICBM क्षमता भी विकसित की जा रही है।
इनमें से अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस के पास सबसे उन्नत मिसाइल प्रौद्योगिकी है, विशेषकर परमाणु त्रिकोण (जमीन, हवा और समुद्र से परमाणु हमला करने की क्षमता) के मामले में।
भारत की मिसाइल क्षमता
भारत ने पिछले कुछ दशकों में अपनी मिसाइल क्षमता में उल्लेखनीय प्रगति की है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के नेतृत्व में एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) की शुरुआत डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के मार्गदर्शन में 1983 में की गई थी।
भारत के पास मौजूद प्रमुख मिसाइलें हैं:
- पृथ्वी सीरीज: छोटी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें
- पृथ्वी-I: 150 किलोमीटर की रेंज
- पृथ्वी-II: 350 किलोमीटर की रेंज
- पृथ्वी-III: 600 किलोमीटर की रेंज (नौसेना संस्करण)
- अग्नि सीरीज: मध्यम से अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें
- अग्नि-I: 700-1,200 किलोमीटर की रेंज
- अग्नि-II: 2,000-2,500 किलोमीटर की रेंज
- अग्नि-III: 3,000-5,000 किलोमीटर की रेंज
- अग्नि-IV: 4,000 किलोमीटर की रेंज
- अग्नि-V: 5,000-8,000 किलोमीटर की रेंज (ICBM)
- अग्नि-प्राइम: अग्नि-I का उन्नत संस्करण
- ब्रह्मोस: भारत-रूस का संयुक्त उद्यम, दुनिया की सबसे तेज़ सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल (2.8 मैक)
- ब्रह्मोस-II: विकासाधीन हाइपरसोनिक संस्करण (7+ मैक)
- आकाश: मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (25 किलोमीटर)
- त्रिशूल: कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल
- नाग: तीसरी पीढ़ी की टैंक रोधी मिसाइल
- प्रहार: छोटी दूरी की सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल (150 किलोमीटर)
- निर्भय: लंबी दूरी की सबसोनिक क्रूज़ मिसाइल (1,000+ किलोमीटर)
- धनुष: नौसेना के लिए विकसित बैलिस्टिक मिसाइल
- शौर्य: मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (700-1,900 किलोमीटर)
- प्रलय: छोटी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (150-500 किलोमीटर)
- के-4: पनडुब्बी से लॉन्च होने वाली बैलिस्टिक मिसाइल (3,500 किलोमीटर)
इनके अलावा, भारत अस्त्र (हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल), रुद्रम (एंटी-रेडिएशन मिसाइल) और SAAW (स्मार्ट एंटी-एयरफील्ड वेपन) जैसे अत्याधुनिक मिसाइल सिस्टम भी विकसित कर रहा है।
विश्व के मिसाइल विकास में भारत का स्थान
मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत का स्थान विश्व के प्रमुख देशों में है। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत को आमतौर पर चौथा सबसे मजबूत मिसाइल शक्ति वाला देश माना जाता है। भारत की मिसाइल क्षमता की कुछ विशेषताएं हैं:
- स्वदेशी विकास: भारत ने अधिकांश मिसाइल प्रणालियों को स्वदेशी रूप से विकसित किया है, जो आत्मनिर्भरता दर्शाता है।
- परमाणु त्रिकोण: भारत परमाणु त्रिकोण (जमीन, हवा और समुद्र से परमाणु हमला करने की क्षमता) वाले चुनिंदा देशों में शामिल है।
- एंटी-सैटेलाइट (ASAT) क्षमता: भारत ने 2019 में ‘मिशन शक्ति’ के तहत ASAT परीक्षण सफलतापूर्वक किया, जिससे अंतरिक्ष शक्ति वाले देशों में शामिल हो गया।
- मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR): भारत 2016 में MTCR का सदस्य बना, जिससे उसे उन्नत मिसाइल प्रौद्योगिकी तक पहुंच मिली।
- हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी: भारत हाइपरसोनिक मिसाइलों जैसे ब्रह्मोस-II पर काम कर रहा है, जो अगली पीढ़ी की मिसाइल तकनीक है।
अंत में…
आज हमने मिसाइलों के बारे में विस्तार से जाना – उनके प्रकार, कार्य प्रणाली, दुनिया के मिसाइल शक्ति संपन्न देश और भारत की मिसाइल क्षमताओं के बारे में। यह स्पष्ट है कि मिसाइलें आधुनिक रक्षा प्रणालियों का एक अनिवार्य हिस्सा हैं और भारत ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
भविष्य में मिसाइल प्रौद्योगिकी और भी विकसित होगी, जिसमें हाइपरसोनिक मिसाइलें, AI-आधारित मार्गदर्शन प्रणालियां और अधिक सटीक वारहेड शामिल होंगे। भारत भी इन तकनीकों पर निरंतर काम कर रहा है ताकि वह अपनी मिसाइल क्षमता को और उन्नत कर सके और अपने रक्षा को और अधिक मजबूत कर सके।
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